Friday 17 April 2015

वर्तमान में योग की उपयोगिता

योग की उपयोगिता पर चर्चा करने से पहले योग वास्तव में  क्या है और इसका प्रतिदिन अनुसरण क्यों किया जाय , यह जानना आवश्यक है?
योग को चित्त की वृत्तिओं के निरोध के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके परिणामस्वरुप शरीर , मष्तिष्क एवं आत्मा का एकीकरण हो जाता है- unification of body, mind and soul. यह एकीकरण अथवा संयुक्तिकरण क्यों आवश्यक है इस पर भी चर्चा किया जाना आवश्यक है.
तथाकथित आधुनिक विज्ञान भी अब यह मानने लगा है की यह समस्त ब्रह्माण्ड एवं उसमे शामिल समस्त गोचर एवं अगोचर कण, पिंड,  वस्तुए आदि विभिन्न तरंग दैर्ध्यों पर कम्पायमान ऊर्जा की रश्मियाँ है जिनका स्वरुप तरंगो की आवृत्तिओं के अनुरूप  बदलता रहता है।  इन ऊर्जा रश्मियों का कम्पन/आवृति  एवं तरंगदैर्ध्य निश्चित तथा व्यवस्थित होता है। इसमे किसी  प्रकार का तनिक भी परिवर्तन अनपेक्षित परिणाम उत्पन्न कर सकता है। ब्रम्हांड  का अस्तित्व तभी तक है जब तक इसकी विभिन्न संरचनाओं में कम्पन की क्रमबद्ध व्यवस्था बनी रहती है। कम्पनो की क्रमबद्ध व्यवस्था परिवर्तित अथवा ख़त्म होते ही ब्रम्हांड का स्वरुप बदल जायेगा जिसे हम ब्रम्हांड का नष्ट होना भी कहते है। संक्षेप  में कहा जा सकता है कि संरचना का वर्तमान स्वरुप तभी तक स्थिर रहेगा जब तक उसमे हो रहे कम्पनो की व्यवस्था बनी रहे अर्थात लय के बदलते अथवा रुकते ही  प्रलय प्रारम्भ  हो जाएगी।
मानव शरीर भी इसका अपवाद नहीं है और यह भी ब्रम्हांड की एक निश्चित आवृत्ति पर स्थित क्रमबद्ध ,व्यवस्थित  कम्पायमान ऊर्जा एवं ऊर्जा कणो की  संरचना है जिसके विभिन्न घटक  आपस में परस्पर एवं सम्पूर्ण  ब्रह्माण्ड के साथ एक लय में है और मानव शरीर का अस्तित्व इस लय  में बने रहने तक ही है। लय  समाप्त प्रलय प्रारम्भ।
मानव का स्थूल शरीर अंततः ब्रह्माण्ड के समस्त सूक्ष्तम् गतिमान भौतिक कणों से निर्मित है जो निरंतर निश्चित  आवृत्ति पर कम्पायमान होकर विशिष्ट तरंगदैर्ध्य की ऊर्जा रश्मिओं का उत्सर्जन करते रहते है। मानव मस्तिष्क अब तक ब्रह्माण्ड में प्रकृति द्वारा  निर्मित ऐसी विशिष्ट   संरचना है जो प्रति सेकंड कितनी ऊर्जा तरंगे उत्सर्जित करता  है यह  तथाकथित आधुनिक विज्ञान अभी तक ज्ञात नहीं कर पाया है। और आत्मा तो स्वयं में ऊर्जा है जिसके बारे में कुछ भी  कहना व्यर्थ होगा।
मानव की इन तीनो संरचनाओं के द्वारा उत्सर्जित होने वाली ऊर्जा रश्मियों की  आपस में लयवद्धता आवश्यक है। जितनी अधिक क्रमबद्धता - लयवद्धता उतना ही ऊर्जायुक्त मानव। इसको और अधिक स्पष्ट करने के लिए संगीत और उसके वाद्य यंत्रों का उदहारण दिया जा सकता है।  चार वाद्य यन्त्र यदि विभिन्न लय पर बजते है तो परिणाम शोर होता है और यदि वे एक सुनिश्चित, क्रमबद्ध लय  में बजते  है तो संगीत कहलाता है।  जितनी परिपूर्ण लय उतना प्रभावी संगीत और लयवद्ध प्रभावी  संगीत में व्यक्ति  स्वयं को भूल कर अपने  अस्तित्व को भी खो देता है।
अब यदि व्यक्ति को ऊर्जावान एवं प्रभावी होना है तो उसकी तीनो संरचनाओं -शरीर, मस्तिष्क एवं आत्मा द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा में लयवद्धता एवं क्रमवद्धाता होनी आवश्यक है। जितनी अधिक लयवद्धता  - क्रमवद्धता उतनी अधिक ऊर्जा उतनी अधिक शक्ति।  यदि ये लयवद्धता - क्रमवद्धता नहीं होगी तो उत्सर्जित ऊर्जा एक दूसरे को काटेगी और ऊर्जा क्षय होगा जो मानव शरीर को कमजोर करेगा। ऊर्जा एवं शक्ति ही मानव जीवन का आधार है। शक्तिहीनता ही मृत्यु है।
योग द्वारा शरीर की इन तीनो संरचनाओं के द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा को एक निश्चित लयवद्धता एवं क्रमवद्धाता प्रदान की जाती है। इस लयवद्धता से मानव को शक्ति प्राप्त होती है जिसके आधार पर जीवन संचालित होता है। यह लयवद्धता यदि  बढ़ते - बढ़ते इस स्तर तक पहुँच जाए कि मानव शरीर , मस्तिष्क एवं आत्मा शेष ब्रम्हांड की  समस्त संरचनाओं से लयवद्ध हो जाय तो इस स्थिति को समाधि कहा जाता है। इस स्थित में मनुष्य की शक्तियां अनंत हो जाएगी।
इस प्रकार योग की उपयोगिता मानव के अस्तित्व में आने से ही प्रारम्भ हो गयी थी जो आज भी है और भविष्य में भी  निरंतर बनी रहेगी। अतः योग का प्रतिदिन अनुसरण करना परमावश्यक है। 









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