Wednesday, 21 October 2015

Human Eugenics - Shiv Swarodaya part 2

Shiva Swarodaya part 2 describes psycho and astro angle of Garbhadan sanskar. The shlokas basically describes how astral positions are responsible for ultimate ties of love and affections among husband and wife. Because astral positions control our breathing patterns and in turn breathing pattern is responsible for the psychological conditions of couple at the time of conception. 

In addition to above five 'tatwa' also play important role in this regard. Those who wants to design their child must consider them. The relevant shlokas in this regard are given below:-


स्वरज्ञानीबलादग्रे निष्फलं कोटिधा भवेत्।
इहलोके परत्रापि स्वरज्ञानी बली सदा।।

 जब एक करोड़ बल निष्फल हो जाते हैं, तब भी स्वरज्ञानी बलशाली बना सबसे अग्रणी होता है, अर्थात् भले ही एक करोड़ (हर प्रकार के) बल निष्फल हो जायँ, लेकिन स्वरज्ञानी का बल कभी निष्फल नहीं होता। स्वरज्ञानी इस लोक में और परलोक या अन्य किसी भी लोक में सदा शक्तिशाली होता है।
When all kinds of worldly powers or strength fail, a person perfect in Swarodaya science remains powerful in this world and other worlds too.

दशशतायुतं लक्षं देशाधिपबलं क्वचित्।
शतक्रतु सुरेन्द्राणां बलं कोटिगुणं भवेत्।।

एक मनुष्य के पास दस, सौ, दस हजार, एक लाख अथवा एक राजा के बराबर बल होता है। सौ यज्ञ करनेवाले इन्द्र का बल करोड़ गुना होता है। एक स्वरयोगी का बल इन्द्र के बल के तुल्य होता है।
 A Man may be powerful ten times, hundred time, ten thousand times or even like a king, but Indra, the performer of hundred Yajnyas, is crore times powerful and a Swarayogi is so powerful as Indra.


श्री देवी उवाच

परस्परं मनुष्याणां युद्धे प्रोक्तो जयस्त्वया।
यमयुद्धे समुत्पन्ने मनुष्याणां कथं जयः।।

इसके बाद माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि हे प्रभो, आपने यह तो बता दिया कि मनुष्यों के पारस्परिक युद्ध में एक योद्ध की विजय कैसे होती है। लेकिन यदि यम के साथ युद्ध हो, मनुष्यों की विजय कैसे होगी?
Then Mother Parvati tells Lord Shiva, “O God, you have told me how a fighter wins a war when men fight among themselves. Now let me know how men will invade the king of death.



ईश्वरोवाच

ध्यायेद्देवं स्थिरो जीवं जुहुयाज्जीव सङ्गमे।
इष्टसिद्धिर्भवेत्तस्य महालाभो जयस्तथा।।

यह सुनकर भगवान शिव बोले- हे देवि, जो व्यक्ति एकाग्रचित्त होकर तीनों नाड़ियों के संगम स्थल आज्ञा चक्र पर ध्यान करता है, उसे सभी अभीष्ट सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं, महालाभ होता है (अर्थात् ईश्वरत्व की प्राप्ति होती है) और सर्वत्र सफलता मिलती है।
Then Lord Shiva said, “O Goddess, if a man concentrates on Ajnya centre at the meeting point of three nadis by becoming motionless, he achieves all what he desires, including all successes, and ultimately becomes one with the cosmic consciousness.”


 
निराकारात्समुत्पन्नं साकारं सकलं जगत्।
तत्साकारं निराकारं ज्ञाने भवति तत्क्षणात्।।

यह सम्पूर्ण दृश्य साकार जगत निराकार सत्ता से उत्पन्न है। जो व्यक्ति साकार जगत से ऊपर उठ जाता है, अर्थात् भौतिक चेतना से ऊपर उठकर सार्वभौमिक चेतना को प्राप्त कर लेता है, तभी उसे पूर्णत्व प्राप्त हो जाता है।
This visible world in forms has been produced by invisible cosmic consciousness. When a man becomes aware of this cosmic consciousness or becomes one with it, he immediately gets knowledge of everything, i.e. Sakar and Nirakar both.
 




श्रीदेव्युवाच

नरयुद्धं  यमयुद्धं त्वया  प्रोक्तं महेश्वर।
इदानीं  देव देवानां  वशीकारणकं वद।।275।।

माँ पार्वती भगवान शिव से कहती हैं कि हे देवाधिदेव, आपने हमें बताया कि मनुष्यों और यम के साथ युद्ध में विजय कैसे पाया जाय। साथ ही मोक्ष आदि के सम्बन्ध में भी बताया। अब आप कृपा कर बताएँ कि दूसरों को अपने वश में किस प्रकार किया जाता है।
Goddess said to Lord Shiva, “O God of gods, you explained me how a war with men and Yama  (death) can be won with the help of knowledge of Swara. Now please let me know how to command (a person).”


ईश्वरोवाच

चन्द्रं सूर्येण चाकृष्य  स्थापयेज्जीवमंडले।
आजन्मवशगा रामा कथितं यं तपोधनैः।। 276।।

भगवान शिव कहते हैं कि हे देवि, तपस्वी लोगों का कहना है कि यदि पुरुष अपने सूर्य स्वर से स्त्री के चन्द्र स्वर को ग्रहण कर अपने अनाहत चक्र में धारण करे, तो वह स्त्री आजीवन उसके वश में रहेगी।
Lord Shiva said, “O Goddess, according to the great preceptors, if a man breathes in the breath of a woman running in left nostril through his right nostril and holds it in his Anahat Chakra, the woman comes under his commands forever.  

जीवेन गृह्यते जीवो जीवो जीवस्य दीयते।
जीवस्थाने गतो जीवो बाला जीवान्तकारकः।। 277।।

पुरुष यदि स्त्री के प्रवाहित स्वर को अपने प्रवाहित स्वर के द्वारा ग्रहण करे और पुनः उसे स्त्री के सक्रिय स्वर में दे, तो वह स्त्री सदा उसके वश में रहती है।
If a man takes in the breath of a woman through his active nostril and again he allows the same breath taken in by the woman through her active nostril, the woman comes under his command forever.



रात्र्यन्तयामवेलायां  प्रसुप्ते कामिनिजने।।
ब्रह्मजीवं  पिबेद्यस्तु  बालाप्राणहरो नरः।।278।।

रात्रि में सो रही महिला के ब्रह्म-जीव (सक्रिय स्वर से निकलने वाली साँस) को यदि पुरुष अपने सक्रिय स्वर से अन्दर खींचता है, तो वह स्त्री उसके वश में हो जाती है।
If the breath of a woman, during her sleeps, taken in by a man, the woman comes under his commands.

अष्टाक्षरं  जपित्वा तु तस्मिन्  काले गते सति।
तत्क्षणं  दीयते चन्द्रो  तु मोहमायाति  कामिनी।।279।।

यदि पुरुष अष्टाक्षर मंत्र का जपकरके अपने चन्द्र स्वर को स्त्री के भीतर उसके सक्रिय स्वर में प्रवाहित करे, तो वह स्त्री उसके वश में हो जाती है।
A man after reciting Ashtakshar Mantra (a Mantra containing eight syllables), breath of his left nostril allows entering the active nostril of a woman, she remains always attracted by him.

शयने  वा प्रसङ्गे वा युवत्यालिङ्गनेSपि वा।
यः  सूर्येण पिबेच्चन्द्रं  स भवेन्मकरध्वजः।।280।।

यदि पुरुष लेटकर आलिंगन के समय अपने सूर्य स्वर से स्त्री के चन्द्र स्वर का पान करे, तो वह स्त्री उसके वश में हो जाती है।
if a man, either while lying or embracing, breathes in the breath of a woman, which should be flowing through her left nostril, through his right nostril, the woman comes under his command.

शिव आलिङ्ग्यते शक्त्या प्रसङ्गे दक्षिणेSपि वा।
तत्क्षणाद्दापयेद्यस्तु मोहयेत्कामिनीशतम्।।281।।

संभोग के समय यदि स्त्री का चन्द्र स्वर और पुरुष का सूर्य स्वर प्रवाहित हो और दोनों के स्वर परस्पर संयुक्त हो जायँ, तो पुरुष को सौ स्त्रियों को वश में करने की शक्ति मिल जाती है।
While going for intercourse if left nostril of the woman and right nostril of the man are active and the breath of both comes into contact, the man acquires the power to have command on hundred women.

सप्त नव त्रयः पञ्च वारान्सङ्गस्तु सूर्यभे।
चन्द्रे द्विचतुःषट्कृत्वा वश्या भवति कामिनी।।282।।

सूर्य स्वर के प्रवाह काल में यदि पुरुष का किसी स्त्री के साथ पाँच बार, सात बार या नौ बार संयोग हो अथवा चन्द्र स्वर के प्रवाह काल में दो बार, चार बार या छः बार संयोग हो, तो वह स्त्री सदा के लिए उस पुरुष के वश में होती है।
At the time when right nostril of a man is active and if he has intercourse with a lady five times, seven times or nine times or when left nostril is active and if he do two times, four times or six times, the woman will come under his command forever.

सूर्यचन्द्रौ समाकृष्य सर्वाक्रान्त्याSधरोठयोः।
महापद्म मुखं स्पृष्ट्वा बारम्बारमिदं चरेत्।।283।।

पुरुष के सूर्य स्वर तथा चन्द्र स्वर सम हों, तो उस समय पुरुष को अपनी साँस अन्दर खींचकर अपना पूरा ध्यान स्त्री के निचले होठ पर केन्द्रित करना चाहिए और जैसे ही सूर्य स्वर प्रधान हो, स्त्री के चेहरे को बार-बार स्पर्श करना चाहिए।
When breath of a man flows through both the nostril and he concentrates his mind on the lower lip of the woman by holding the breath in and as his only right nostril becomes fully active, he should touch her face repeatedly.

आप्राणामिति पद्मस्य यावन्निद्रावशं गता।
पश्चाज्जागृति वेलायां चोष्यते गलचक्षुषी।।284।।

जब स्त्री गहरी निद्रा में सो रही हो, उस समय पुरुष को उसके होठों को बार-बार उसके जगने तक चुम्बन करना चाहिए और उसके बाद उसके नेत्रों और गरदन का चुम्बन करना चाहिए।
At the time when the woman is sleeping in deep sleep, the man should kiss her lips till she awakes and thereafter he should kiss her eyes and neck.

अनेन विधिना कामी वशयेत्सर्वकामिनीः।
इदं न वाच्यमस्मिन्नित्याज्ञा परमेश्वरि।।285।।

हे पार्वती, इस प्रकार प्रेमी समस्त कामिनियों को अपने वश में कर सकता है। स्त्रियों को वश में करने का अन्य कोई उपाय नहीं है।
O Goddess Parvati, in these ways a lovers can have command over their partners. There is no other way to have command over women, except what were told.

ऋतुस्नाता रता नारी पञ्चमेSह्नि यदा भवेत्।
सूर्यचन्द्रमसोर्योगे सेवनात्पुत्र संभवः।।286।।

रजस्वला होने के पाँचवें दिन यदि स्त्री का चन्द्र स्वर प्रवाहित हो और पुरुष का सूर्य स्वर प्राहित हो, तो समागम करने से पुत्र उत्पन्न होता है।
If husband and wife have intercourse on the fifth day from the day menstruation starts and husband has right nostril breathing and wife left nostril breathing at the time, the wife will conceive and will be blessed with a male child.

शङ्खवल्लीं गवां दुग्धे पृथ्व्यापो वहते यदा।
भर्तृरेव वदेद्वाक्ये दर्प देहि त्रिभिर्वचः।।287।।

स्त्री गाय के दूध के साथ शंखवल्ली (एक प्रकार की बूटी) का सेवन कर प्रवाहित स्वर में पृथ्वी तत्त्व या जल तत्त्व का प्रवाह होने पर अपने पति से तीन बार पुत्र के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
First the woman should take Shankhavalli (a kind of creeper with medicinal property) with cow milk and when Prithvi Tattva or Jala Tattva is active in the breath, she should request her husband three times for having a son.

ऋतुस्नाता पिबेन्नारी ऋतुदानं तु योजयेत्।
रूपलावण्यसम्पन्नो नरसिंहः प्रसूयते।।288।।

ऋतुस्नान के समय यदि स्त्री उपर्युक्त पेय का सेवन करे और रजो-समाप्ति के दिन (रजस्वला होने के पाँचवे दिन) पति के साथ समागम करने पर गर्भधारण होता है तथा वह नरसिंह के समान पुत्र को जन्म देती है।
If a woman takes the above drink, i.e. Shankhavalli with cow milk, during menstruation period and have intercourse on the day it ceases (fifth day), she will conceive and blessed with a brave male child.

सुषुम्ना सूर्यवाहेन ऋतुदानं तु योजयेत्।
अङ्गीनः पुमान्यस्तु जायतेSत्र कुविग्रहः।।289।।

ऋतु-स्नान के पाँचवे दिन यदि स्त्री का सुषुम्ना स्वर का प्रवाह हो और पुरुष के सूर्य स्वर का प्रवाह हो, ऐसे समय में किए गए समागम के परिणाम स्वरूप गर्भाधान से अंगहीन और कुरूप पुत्र उत्पन्न होता है।
If a woman have intercourse on the fifth day of her menstruation period during flow of breath through both the nostril and her husband has right nostril breath at the time, she will have an ugly and physically handicapped son.

विषमाङ्के दिवारात्रौ विषमाङ्के दिनाधिपः।
चन्द्रेनेत्राग्नितत्त्वेषु वंध्या पुत्रमवाप्नुयात्।।290।।
ऋतु-स्नान के बाद विषम तिथियों को दिन अथवा रात्रि में जब पुरुष का सूर्य स्वर और स्त्री का चन्द्र स्वर प्रवाहित हो, दोनों का समागम होने पर बन्ध्या स्त्री को भी पुत्र की प्राप्ति होती है।
After cessation of menstruation if husband and wife have intercourse on odd dates (according to the lunar month) either during day or night, even a sterile or barren woman will conceive and will be blessed with a son.

ऋत्वारम्भे रविः पुंसां स्त्रीणां च सुधाकरः।
उभयोः सङ्गमे प्राप्तो वन्ध्या पुत्रमवाप्नुयात्।।291।।

ऋतु के आरम्भ में स्त्री का चन्द्र स्वर प्रवाहित हो और पुरुष का सूर्य स्वर प्रवाहित हो, ऐसे समय में सहवास करने से बन्ध्या स्त्री को भी पुत्र पैदा होता है।
If husband and wife have intercourse on the day of start of menstruation and husband has right nostril breathing and wife left nostril breathing at that time, even a sterile or barren woman will also be blessed with a son.

ऋत्वारम्भे रविः पुंसां शुक्रान्ते च सुधाकरः।
अनेन क्रमयोगेन नादत्ते कामिनीजनः।।292।।

ऋतु के आरम्भ में सहवास के समय पुरुष का सूर्य स्वर प्रवाहित हो रहा हो और स्खलन के समय अचानक चन्द्र स्वर प्रारम्भ हो जाय, तो गर्भ-धारण नहीं हो सकता।
As a result of intercourse on the first day of menstruation, conception cannot take place if the husband’s right nostril breath is suddenly changed to left nostril at the time of fall.

चन्द्रनाडी यदा प्रश्ने गर्भे कन्या तदा भवेत्।
सूर्यो भवेत् तदा पुत्रो द्वयोर्गर्भो विहन्यते।।293।।

यदि गर्भ के सम्बन्ध में कोई प्रश्न करे और स्वर-योगी (उत्तर देनेवाले) का उस समय यदि चन्द्र स्वर प्रवाहित हो, तो गर्भस्थ संतान कन्या और यदि सूर्य-स्वर प्रवाहित हो, तो पुत्र होता है। किन्तु यदि सुषुम्ना प्रवाहित हो, तो गर्भपात समझना चाहिए।
In case, someone asks about the issue being born as a result of pregnancy and at that time if the breath of Swar-yogi (answering authority) is flowing through left nostril, the answer will be that a female child is going to be born and if the breath is in the right nostril, birth of a male child can be predicted. But if breath is flowing through both the nostrils, prediction of abortion should be made.  
  
पृथिव्यां पुत्री जले पुत्रः कन्यका तु प्रभञ्जने।
तेजसि गर्भपातः स्यान्नभस्यपि नपुंसकः।।294।।

यदि प्रश्न के समय स्वर में पृश्वी या वायु तत्त्व प्रवाहित हो, तो गर्भस्थ संतान कन्या, जल तत्त्व प्रवाहित हो, तो पुत्र, अग्नि तत्त्व का प्रवाहकाल होने पर गर्भपात और आकाश तत्त्व का प्रवाह-काल होने पर नपुंसक संतान उत्पन्न होने का योग समझा जाय।
If Prithvi Tattva or Vayu Tattva is present in the breath at the time of query about the issue, birth of a female is predicted and if there is Jala Tattva, it is son. But in presence of Agni Tattva in the breath, prediction will be abortion and in presence of Akash Tattva, birth of eunuch is indicated.

चन्द्रे स्त्री पुरुषः सूर्ये मध्यमार्गे नपुंसकः।
गर्भप्रश्ने यदा दूतः पूर्णे पुत्रः प्रजायते।।295।।

प्रश्न काल में चन्द्र स्वर का प्रवाह हो तो लड़की होने की, सूर्य स्वर का प्रवाह हो तो लड़का होने की और यदि सुषुम्ना स्वर प्रवाहित हो तो नपुंसक संतान की उत्पत्ति समझनी चाहिए। उस समय यदि प्रश्नकर्त्ता का स्वर पूर्ण रूप से प्रवाहित हो तो पुत्र पैदा होने की भविष्यवाणी करनी चाहिए। 
If the breath is present in the left nostril at the time of query about an issue being born, a female child is predicted, presence of breath in right nostril indicates birth of a male child and if both nostrils are running, birth of an eunuch is predicted. But if at the time of query, the questioner has his breath full and free in any of the nostrils, birth of a male child is indicated.


शून्ये  शून्यं  युगे  युग्मं गर्भपातश्च संक्रमे।
तत्ववित्स विजानीयात् कथितं तत्तु सुन्दरि।।296।।

हे सुन्दरि, यदि शून्य स्वर के प्रवाह-काल में गर्भाधान नहीं होता, पर दोनों स्वर संतुलित रूप से प्रवाहित हो रहे हों, तो जुड़वाँ संतान होती है। लेकिन स्वर का संक्रमण काल होने पर गर्भाधान होता तो है, पर उसका पतन हो जाता है, ऐसा तत्त्ववादियों की मान्यता है।
O Beautiful Goddess, as a result of intercourse at the time of flow of breath through both nostrils, conception is not possible, but if balanced breath in both the nostrils is present, birth of twins takes place. But in case of conception during the transition of breath from one nostril to another indicates abortion as per wises.

गर्भाधानं मारुते स्याच्च दुःखी दिक्षु ख्यातो वारुणे सौख्ययुक्तः।
गर्भस्रावः स्वल्पजीवश्च वह्नौ भोगी भव्यः पार्थिवेनार्थयुक्तः।।297।।

वायु तत्त्व के प्रवाहकाल में हुए गर्भाधान के परिणाम स्वरूप उत्पन्न संतान दीन-हीन और अभागी होती है, जल तत्त्व के प्रवाहकाल में गर्भाधान से उत्पन्न संतान सुखी और गौरवशाली होती है, अग्नि तत्त्व में गर्भाधान ठहरता नहीं, यदि ठहर गया तो इस प्रकार उत्पन्न संतान अल्पायु होती है, पर पृथ्वी तत्त्व के प्रवाहकाल में हुए गर्भाधान के परिणाम स्वरूप उत्पन्न संतान धन-धान्य से युक्त आनन्द का उपभोग करनेवाली होती है।
If at the time of conception Vayu Tattva is present in the breath, the child being born will have miserable life, as a result of conception in presence of Jala Tattva indicates, a child is born with all name and fame and prosperity. In presence of Agni Tattva conception either impossible or in case it takes place, the child being born gets short life. But a child born as a result of conception during the flow of Prithvi Tattva in the breath, gets prosperity and all kinds of pleasure in its life.  

धनवान्  सौख्ययुक्तश्च  भोगवानर्थ  संस्थितिः।
स्यान्नित्यं वारुणे तत्त्वे व्योम्नि गर्भो विनश्यति।।298।।

जल तत्त्व के प्रवाहकाल में गर्भाधान से उत्पन्न संतान धन-धान्य और ऐश्वर्य से सम्पन्न होती है। परन्तु आकाश तत्त्व के प्रवाहकाल का गर्भाधान नहीं ठहरता।
A child born as a result conception during the presence of Jala Tattva in the breath, gets all kinds of prosperity and pleasures in his life. But in presence of Akash Tattva conception is not possible or abortion takes place.

महीन्द्रे  सुसुतोत्पत्तिर्वारुणे  दुहिता भवेत्।
शेषेषु गर्भहानिः स्याज्जातमात्रस्य वा मृतः।।299।।

पृथ्वी तत्त्व के प्रवाहकाल के गर्भ से सुपुत्र उत्पन्न होता है और जल तत्त्व के प्रवाहकालिक गर्भ से कन्या का जन्म होता है। जबकि अन्य तीन तत्त्वों के प्रवाहकाल में गर्भ नहीं ठहरता और यदि ठहर गया, तो उससे उत्पन्न संतान अल्पायु होती है।
As a result of conception during of presence  of Prithivi Tattva in the breath a worthy son will be born but in case of conception during presence of Jal Tattva, daughter will be born. Whereas during presence of other three Tattvas conception either does not take place or if it takes place, the child is born with short life. 

रविमध्यगतश्चन्द्रश्चन्द्रमध्यगतो   रविः।
ज्ञातव्यं गुरुतः शीघ्रं न वेदशास्त्रकोटिभिः।।300।।

सूर्य स्वर के मध्य में चन्द्र स्वर उदय हो अथवा चन्द्र स्वर के मध्य में सूर्य स्वर उदय हो, तो ऐसे समय में तुरन्त गुरु से मिलकर मार्ग-दर्शन लेना चाहिए। क्योंकि ऐसे समय में करोड़ों वेद, शास्त्र आदि ग्रंथ भी किसी काम के नहीं होते।
When left breath starts before completion of right breath or right breath starts before completion of left breath without any external effort, then it is advised to get guidance from the master of this science. Because in such situation all scriptures, including  Vedas  and other Shastras, are of no use.

                                                                                                                          (........to be contiuned)

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