यजुर्वेद एवं अथर्ववेद में मंत्रो
द्वारा चिकित्सा किये जाने का उल्लेख है. प्रत्येक अंग एवं प्रत्येक रोग का एक विशिष्ट
मंत्र है जिसके शुद्ध उच्चारण से रोग का नाश होने के साथ – साथ सम्बंधित अंग भी
पुष्ट होता है. यह दो कारणों से संभव है तथा समझ
में आता है. प्रथम – जब मंत्र के माध्यम से हम किसी अंग विशेष की पुष्टि हेतु
कमाना करते है तो हमारा अवचेतन मन (sub-conscious mind) इस
दिशा में सक्रिय होकर अंग को स्वस्थ एवं नीरोग बना देता है. द्वितीय – मंत्रो का
शुद्ध उच्चारण हमारे चेतना चक्रों को सक्रिय करके हमारी चेतना एवं उर्जा के स्तर का
उच्चीकरण करते है जिसके परिणाम स्वरुप हम हष्ट – पुष्ट एवं नीरोग बने रहते है.
मंत्रो के शुद्ध
उच्चारण के पूर्व उनकी प्रकृति जानना आवश्यक है क्योंकि गलत उच्चारण एवं प्रयोग
लाभ के स्थान पर तत्काल अनिष्ट भी हो सकता है. मंत्र एक साधन हैं जिनके शुद्ध
उच्चारण से हमारे ऊर्जा चक्र व्यवस्थित रूप से सक्रिय होकर उच्च चेतना स्तर को प्राप्त करते है. अग्नि
पुराण में मंत्रो की प्रकृति के बारे में उल्लेख किया गया है.
मंत्रो की तीन
जातियां होती है – स्त्री, पुरुष और नपुंसक. जिन मन्त्रों के
अंत में ‘स्वाहा’ पद का प्रयोग हो, वे स्त्री जातीय है. जिनके अंत में ‘नमः’
पद जुड़ा हो, वे मंत्र नपुंसक है. शेष सभी मंत्र पुरुष जातीय है.
मंत्रो के दो भेद है
– ‘आग्नेय’ एवं ‘सौम्य’. जिनके आदि में ‘प्रणव’ लगा हो, वे आग्नेय
है और जिनके अंत में प्रणव का योग हो, वे सौम्य कहे गए है. इनका जप इन्हीं दोनों
के काल में करना चाहिए. सूर्य नाडी चलती हो तो आग्नेय मंत्र का और चन्द्र नाडी
चलती हो तो सौम्य मन्त्रों का जप करे.
जिस मंत्र में तार
(ॐ), अन्त्य (क्ष), अग्नि (र), वियत् (ह) – इनका बाहुल्येन प्रयोग हो, वह आग्नेय
माना जाता है. शेष मंत्र सौम्य कहे गए है. ये दो प्रकार के मंत्र क्रमशः
क्रूर और सौम्य कर्मो में प्रशस्त माने गए है. आग्नेय मंत्र प्रायः अंत में ‘नमः’
पद से युक्त होने पर ‘सौम्य’ हो जाते है और ‘सौम्य’ मंत्र भी अंत में ‘फट्’ लगा
देने पर ‘आग्नेय’ हो जाते है.
यदि मंत्र सोया हो
या सोकर तत्काल ही जगा हो तो वह सिद्धि दायक नहीं होता है. जब वाम नाडी चलती हो तो
वह आग्नेय मंत्रो के सोने का समय हैऔर यदि दाहिनी नाडी चलती हो तो उनके जागरण का
काल है. सौम्य मंत्र के सोने और जगाने का काल इसके विपरीत है. अर्थात वाम नाडी उसके
जागरण का और दक्षिण नाडी उसके शयन का काल है. जब दोनों नाड़ियाँ साथ-साथ चल रही
हों, उस समय आग्नेय और सौम्य दोनों मंत्र जगे रहते है. अतः उस समय दोनों का जप
किया जा सकता है.
दुष्ट नक्षत्र,
दुष्ट राशि तथा शत्रु रूप आदि अक्षर वाले मन्त्रों को अवश्य त्याग देना चाहिए.
इस प्रकार से मंत्रो
के जाप के समय उनकी प्रकृति को द्रष्टिगत रखना चाहिए.
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