योग एक जीवन पद्दति है जिसका सम्बन्ध किसी
धर्म, सम्प्रदाय एवं मत से न होकर सम्पूर्ण मानवता से है. यह कहना की यह केवल
हिन्दू पद्दति अथवा Hindu way of life है,
त्रुटिपूर्ण है. इसाई धर्म में उपवास को महत्व देना, इन्द्रियो का दास न बनना,
ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास करना तथा सत्कर्म करते हुए परमेश्वर में विलीन हो
जाना, योग ही है. जरथोस्ती धर्म का ‘अहुर वन’ – ईश्वर प्राप्ति की तीन प्रक्रियाये
– ज्ञान, कर्म एवं मुक्ति – की साधना ही मनुष्य को मोक्ष का अधिकारी बनाती है.
बौद्ध एवं जैन धर्म का आधार ही योग है जहाँ पर क्लिष्ट योग को आसान बना कर जा
सामान्य को समझाया गया है. इस्लाम में नमाज केवल आसन एवं ध्यान पर आधारित
प्रार्थना पद्दति है. पांच समय का नमाजी
प्रायः रोग मुक्त रहता है. कबीर का पूरा साहित्य ही योग पर आधारित होकर जन सामान्य
को इसे अपनाने के लिए प्रेरित करता है. योग और प्राकृतिक चिकित्सा की व्याख्या
अब्दुल रहीम खानाखान के निम्न दोहे से अच्छी और कहाँ हो सकती है :-
रहिमन बहु भैषज करत व्याधि न
छाडत साथ
खग मृग बसत अरोग वन हरि अनाथ के नाथ
वन यानि प्राकृतिक वातावरण तथा हरि प्राकृतिक शक्तियां – इनके अधीन, इनके प्रभाव में जो भी रहता है वह सदैव निरोग रहता अन्यथा
अनेक प्रकार की औषधियां लेने एवं विभिन्न प्रकार की चिकित्सा कराने पर भी
बीमारियाँ साथ नहीं छोड़ती है.
इस प्रकार योग सम्पूर्ण मानवता की धरोहर है जिसका संबंध मात्र किसी विशेष धर्म अथवा सम्प्रदाय से न होकर अखिल विश्व समुदाय से है.
मनुष्य के कष्टों का निवारण एवं कल्याण केवल और केवल योग जीवन पद्धति के अपनाने से
ही संभव है.
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