भारतीय जन मानस प्रत्येक कार्य, कार्य के अनुकूल
शुभ मुहूर्त की गणना करवाकर कार्य को मुहुर्तानुसार निष्पादित करता है ताकि कार्य
सफल एवं फलदायी हो. मुहूर्तो की संकल्पना एवं व्यवस्था भारतीय संस्कृति की
विशिष्टता है. कार्यो को मुहूर्त के अनुसार सम्पादित करने पर सफलता निश्चित है,
ऐसा विश्वास किया जाता है. आज भी प्रत्येक शुभ कार्य के लिए उचित मुहूर्त निकलवाया
जाता है और उसी के अनुरूप कार्य किया जाता है.
मुहूर्त की महत्ता के बारे में महान
भारतीय गणितज्ञ भाष्कराचार्य जिन्होंने
गणित की पुस्तक लीलावती लिखी, के जीवन से सम्बंधित घटना द्रष्टव्य है.
भास्कराचार्य ने अपनी पुत्री लीलावाती की शादी का मुहूर्त पहले से गणना करके बता
दिया था और आगाह भी कर दिया था की यदि निर्धारित मुहूर्त में लीलावती की शादी नहीं
हुयी तो फिर उसकी शादी कभी नहीं होगी. नियत तिथि पर लीलावती एवं उसका भावी वर शुभ
मुहूर्त की प्रतीक्षा करने लगे. घटी यंत्र – जो एक छोटी कटोरी जिसकी तली में एक
छोटा सा छेद होता है, पानी पर तैरा दी जाती है और यह कटोरी, एक घटी यानि २४ मिनट
में डूब जाती है – से मुहूर्त की गणना प्रारंभ की गयी. लीलावती भी वर के साथ घटी
यंत्र के पास ही बैठी थी. दुर्भाग्य से अनजाने में लीलावती के गले के हार का एक
छोटा सा मोती टूटकर घटी यंत्र में गिर गया जिसकी जानकारी किसी को न हो सकी.
परिणामस्वरूप घटी यंत्र निर्धारित समय पर नहीं डूबा और शादी का मुहूर्त निकल गया.
कुछ समय पश्चात वहां पर एक सर्प प्रकट हुआ जिसने वर को डंस लिया और उसकी मृत्यु हो
गयी. लीलावती को पुनः कोई वर नहीं मिला और वे आजीवन अविवाहित रही. भाष्कराचार्य इस
घटना से बहुत दुखी हुए और उन्होंने लीलावती को समर्पित करते हुए गणित की पुस्तक
‘लीलावती’ की रचना की. मुहूर्त का महत्व कितना है इस घटना से समझा जा सकता है.
मुहूर्त की गणना, उसका नामकरण एवं उस
मुहूर्त में क्या कार्य सम्पादित करने चाहिए, इसका उल्लेख ‘अथर्ववेदीय ज्योतिषम् – काश्यप – प्रजापति – संवादेन प्रोक्तम्’ में किया गया है. बारह अंगुल की सीधी लकड़ी को
समतल भूमि पर खडी गाढ़कर उसकी छाया की माप के अनुसार मुहूर्त निर्धारण किया जाता
है. तीस त्रुटिओं का एक मुहूर्त होता है.
त्रुटीनान्तु
भवेत् त्रिशन्मुहूर्तस्य प्रयोजनम् |
द्वादशांगुलमुच्छेषम् तस्य छाया
प्रमाणतः ||
नीचे दी गयी तालिका में लकड़ी की छाया
की माप एवं माप के अनुरूप मुहूर्त तथा उस मुहूर्त में किये जाने वाले कार्यो का
उल्लेख किया गया है.
क्रमांक
|
लकड़ी की छाया की
माप (अंगुल में)
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मुहूर्त
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मुहूर्त में किये
जाने वाले कार्य
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1
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96 – 61
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रौद्र
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सभी प्रकार के मारणादि प्रयोग, भयंकर एवं क्रूर
कार्य.
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2
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61 – 13
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श्वेत
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नवीन वस्त्र धारण करना, स्नान करना, बगीचा
लगाना, ग्राम बसना, कृषि कार्यो का आरंभ करना एवं इसी प्रकार के अन्य सोचे हुए
कार्यो को प्रारंभ करना.
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3
|
13 – 7
|
मैत्र
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मित्रता, संधि एवं मेल मिलाप संबंधी कार्य.
|
4
|
7 – 6
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सारभट
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शत्रुओं के लिए अभिचार कर्म अर्थात मारणादि प्रयोग अथवा अपने तथा अपने मित्रो के शत्रुओं
को नष्ट करने हेतु कार्य.
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5
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6 – 5
|
सावित्र
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सभी प्रकार के यज्ञ, विवाह,चूडा कर्म, उपनयन
आदि संस्कार एवं अन्य देव कार्य.
|
6
|
5 – 4
|
वैराज
|
राजाओ के पराक्रम के कार्य, शस्त्रों का
निर्माण, वस्त्रों का दान आदि.
|
7
|
4 – 3
|
विश्वावसु
|
द्विजाति
के स्वाध्याय संबंधी सभी कार्य एवं अर्थ सिद्धि के कार्य.
|
8
|
3 – 0
|
अभिजित
|
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र आदि सभी
वर्णों के मेल मिलाप से सम्बंधित कार्य. यह मुहूर्त सब प्रकार की कामनाओं को
पूर्ण करने वाला है तथा इस मुहूर्त में धन संग्रह करने वाले एवं किसी प्रकार की
यात्रा करने वाले को अवश्य सफलता मिलती है.
|
9
|
0 – 3
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रोहिण
|
इस मुहूर्त में लगाए गए वृक्ष, बेल तथा लताये
निरोग होती है और उन पर सर्वदा ही, सुन्दर फल एवं फूल लगे रहते है.
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11
|
3 – 4
|
बल
|
इस मुहूर्त में राजाओं को स्वयं ही सेनाओ का
संचालन करना चाहिए क्योकि इस मुहूर्त में आक्रमण करने पर विजय अवश्य प्राप्त
होती है.
|
11
|
4 – 5
|
विजय
|
इस मुहूर्त में चढ़ाई करने से विजय अवश्य
प्राप्त होती है और स्वस्ति वाचन तथा शांति पाठ आदि मंगलाचार कार्यो के लिए भी
यह मुहूर्त प्रशस्त है.
|
12
|
5 – 6
|
नैरऋत
|
शत्रुओं के राष्ट्रों पर आक्रमण करके उनकी
सम्पूर्ण सेना को नष्ट किया जा सकता है और पराजित शत्रु की संपत्ति भी इसी मुहूर्त
में आक्रमण करने से प्राप्त होती है.
|
13
|
6 – 12
|
वारुण
|
जल में उत्पन्न होने वाले धान्य, गेंहूं, जौ,
धान, कमल आदि के बीज बोना शुभ होता है.
|
14
|
12 – 60
|
सौम्य
|
सब शुभ कार्य सफल होते है.
|
15
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60 – 96
|
भग
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स्त्रिओं के विशेषकर कन्यायों के सौभाग्य कार्य
अर्थात पाणिग्रहण संस्कार के लिए यह मुहूर्त सर्वथा उपयुक्त है.
|
इस प्रकार सूर्योदय से
सूर्यास्त पर्यन्त पंद्रह मुहूर्त बतलाये गए है तथा रात्रि में भी दिन के क्रम से
पंद्रह मुहूर्त होते है जिनकी गणना शंकु छाया के अनुपात से की जाती है अर्थात
चौबीस घंटे के एक दिन में कुल तीस मुहूर्त होते है.
कार्य के अनुरूप मुहूर्त, लग्न एवं तिथि की गणना करवाकर कार्य करने से कार्य
अवश्य सफल एवं फलदायी होता है
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